मद्रास HC का अहम फैसला, यौन उत्पीड़न कानून का नहीं कर सकते दुरुपयोग

मद्रास हाईकोर्ट ने माना है कि किसी महिला कर्मचारी के खिलाफ अनर्गल भाषा बोलना कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आता और कानूनन इसे अपराध नहीं मान सकते. कोर्ट ने यह भी कहा कि गलत आरोपों के आधार पर इस कानून के दुरुपयोग की इजाजत नहीं दी जा सकती.


मद्रास हाईकोर्ट के इस फैसले से केंद्र सरकार के एक कर्मचारी को बड़ी राहत मिली है. उसके खिलाफ एक महिला कर्मचारी ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. कोर्ट ने कहा कि कार्यस्थल पर हर प्रशासनिक प्रमुख या चीफ को काम निकलवाने की आजादी है और इसके लिए वह अपने विवेक से काम ले सकता है. ट्रेड मार्क्स एंड जीआई में डिप्टी रजिस्ट्रार वी. नटराजन की याचिका को मंजूरी देते हुए जस्टिस एम. सत्यनारायण और आर. हेमलता की पीठ ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेशन ट्रिब्यूनल, सीएआई) और जिला स्तरीय लोकल कंप्लेन कमेटी (एलसीसी) के आदेशों को रद्द कर दिया जिसमें केंद्रीय कर्मचारी के खिलाफ आरोप लगाए गए थे.


बेंच ने अपने आदेश में कहा, ऐसा लगता है शिकायत के जरिये याचिकाकर्ता के खिलाफ निहित स्वार्थ साधने की कोशिश की गई. हर दफ्तर को अपना डेकोरम जरूर मेंटेन करना चाहिए और महिला कर्मचारियों को भी उनके काम में छूट नहीं दी जा सकती. कोर्ट ने कहा, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 का उद्देश्य महिलाओं में बराबरी लाना और कार्यस्थल को खुशनुमा जगह बनाना है ताकि महिलाओं की मर्यादा और सम्मान की रक्षा हो सके. हालांकि इस कानून का दुरुपयोग कर किसी पर गलत आरोप नहीं लगा सकते और न ही किसी का उत्पीड़न कर सकते हैं.(PTI)


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