कूच बिहार के राजा नर नारायण ने 1665 में इस मंदिर का दोबारा निर्माण कराया, जब इस पर विदेशी आक्रमणकारियों ने हमला कर नुकसान पहुंचाया। इस मंदिर में सात अण्डाकार स्पायर हैं, जिनमें से प्रत्येक पर तीन सोने के मटके लगे हुए हैं और प्रवेश द्वारा सर्पिलाकार है जो एक घुमावदार रास्ते से थोड़ी दूर पर खुलता है, जो विशेष रूप से मुख्य सड़क को मंदिर से जोड़ता है। मंदिर के शिल्पकला से बनाए गए कुछ पैनलों पर प्रसन्नता की स्थिति में कुछ हिन्दु देवी और देवताओं के चित्र हैं। कच्छुए, बंदर और बड़ी संख्या में कबूतरों ने इस मंदिर को अपना घर बनाया है तथा ये इसके परिसर में घुमते रहते हैं, जिन्हें मंदिर के प्राधिकारियों द्वारा तथा दर्शकों द्वारा भोजन कराया जाता है। मंदिर का शांत और कलात्मक वातावरण कुल मिलाकर दर्शकों के मन को एक अनोखी शांति देता है और उनके मन में एक सात्विक भावना उत्पन्न होती है, यही कारण है कि यहां काफी लोग आते हैं।
इसकी रहस्यमय भव्यता और देखने योग्य स्थान के साथ कामाख्या मंदिर न केवल असम बल्कि पूरे भारत का चकित कर देने वाला मंदिर है।