बृहदेश्वर मंदिर - तंजौर
ब़ृहदेश्वर मंदिर चोल वास्तुकला का शानदार उदाहरण है, जिनका निर्माण महाराजा राजा राज (985-1012.ए.डी.) द्वारा कराया गया था। इस मंदिर के चारों ओर सुंदर अक्षरों में नक्काशी द्वारा लिखे गए शिला लेखों की एक लंबी श्रृंखला शासक के व्यक्तित्व की अपार महानता को दर्शाते हैं।
बृहदेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक भवन है और यहां इन्होंने भगवान का नाम अपने बाद राज राजेश्वरम उडयार रखा है। यह मंदिर ग्रेनाइट से निर्मित है और अधिकांशत: पत्थर के बड़े खण्ड इसमें इस्तेमाल किए गए हैं, ये शिलाखण्ड आस पास उपलब्ध नहीं है इसलिए इन्हें किसी दूर के स्थान से लाया गया था। यह मंदिर एक फैले हुए अंदरुनी प्रकार में बनाया गया है जो 240.90 मीटर लम्बा ( पूर्व - पश्चिम) और 122 मीटर चौड़ा (उत्तर - दक्षिण) है और इसमें पूर्व दिशा में गोपुर के साथ अन्य तीन साधारण तोरण प्रवेश द्वार प्रत्येक पार्श्व पर और तीसरा पिछले सिरे पर है। प्रकार के चारों ओर परिवारालय के साथ दो मंजिला मालिका है।
एक विशाल गुम्बद के आकार का शिखर अष्टभुजा वाला है और यह ग्रेनाइट के एक शिला खण्ड पर रखा हुआ है तथा इसका घेरा 7.8 मीटर और वज़न 80 टन है। उप पित और अदिष्ठानम अक्षीय रूप से रखी गई सभी इकाइयों के लिए सामान्य है जैसे कि अर्धमाह और मुख मंडपम तथा ये मुख्य गर्भ गृह से जुड़े हैं किन्तु यहां पहुंचने के रास्ता उत्तर - दक्षिण दिशा से अर्ध मंडपम से होकर निकालता है, जिसमें विशाल सोपान हैं। ढलाई वाला प्लिंथ विस्तृत रूप से निर्माता शासक के शिलालेखों से भरपूर है जो उनकी अनेक उपलब्धियों का वर्णन करता है, पवित्र कार्यों और मंदिर से जुड़ी संगठनात्मक घटनों का वर्णन करता है। गर्भ गृह के अंदर बृहत लिंग 8.7 मीटर ऊंचा है। दीवारों पर विशाल आकार में इनका चित्रात्मक प्रस्तुतिकरण है और अंदर के मार्ग में दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती और भिक्षाटन, वीरभद्र कालांतक, नटेश, अर्धनारीश्वर और अलिंगाना रूप में शिव को दर्शाया गया है। अंदर की ओर दीवार के निचले हिस्से में भित्ति चित्र चोल तथा उनके बाद की अवधि के उत्कृष्ट उदाहरण है।
उत्कृष्ट कलाओं को मंदिरों की सेवा में प्रोत्साहन दिया जाता था, शिल्पकला और चित्रकला को गर्भ गृह के आस पास के रास्ते में और यहां तक की महान चोल ग्रंथ और तमिल पत्र में दिए गए शिला लेख इस बात को दर्शाते हैं कि राजाराज के शासनकाल में इन महान कलाओं ने कैसे प्रगति की।
सरफौजी, स्थानीय मराठा शासक ने गणपति मठ का दोबारा निर्माण कराया। तंजौर चित्रकला के जाने माने समूह नायकन को चोल भित्ति चित्रों में प्रदर्शित किया गया है।